Sharing feelings about depression can be quite daunting. Talking about it is hard but being judged is even harder. While a lot of people are getting out there and talking about it on social media but many are not able to understand the different layers of emotions that a person undergoing it goes through.
Here is an expressive poem by Sahil Sankhla a.k.a Chillbillee
मायूसी की है एक ख़ास खूबी, कभी केवल एक झलक दिखाती और कभी अपने आप में है डुबा लेती।
दोस्त थे कभी जिन से बट जाया करती थी, अनगिनत हिस्सों में कट जाया करती थी, अब अक्सर मुझको देती है काट, मायूसी की अलग ही है बात।
कभी लगता है अब यही है मेरी पेहचान, अक्सर क़त्ल कर देती है: मेरी जान-ए-अदा, मेरी आन बान, मेरा आत्म सम्मान।
अकेले में पाता हूँ खुद को निराश, ख़ुशी का नक़ाब पहने निकल जाते हैं सैकड़ों दिन रात, मायूसी की कुछ ऐसी ही है बात।
कभी बीड़ी के धुएं में दिखती है, कभी बीते पलों में, अक्सर बिन बुलाए आ जाती है करने मुझसे मुलाक़ात, मायूसी की है ऐसी ही कुछ बात।
वो मेरा उड़ाती है मजाक, कहती है मुझे कायर, कभी कहती है कि क्यूं नहीं बनता सशक्त, कभी कहती है कि तुझसे कुछ ना हो पाएगा, तू शेर नहीं है, तू है एक तुच्छ सा शायर, कभी कहती है कि क्यों है मुझसे इतना प्यार, क्यों बना रखा है मेरे लिए ये तख़्त?
अब कौन समझाए की मायूसी तेरी कुछ ऐसी ही है बात, अक्सर बस तू ही है मेरे साथ, अक्सर बस तू ही है मेरे साथ।
Sahil is an intuitive and fun person to meet, a great friend, and a philosopher at heart. He started writing poems in 2006 but only just published them on Instagram. We are so glad to have found such gems. Show some love @ Chillbillee
We hope that his poem gave you some food for thought.
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